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बेनजीर - दरिया किनारे का ख्वाब

प्रदीप श्रीवास्तव

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16913
आईएसबीएन :978-1-61301-722-7

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प्रदीप जी का नवीन उपन्यास

भूमिका

 

बेनज़ीर कोई काल्पनिक पात्र नहीं है। यह हमारे आपके समाज की ही एक सदस्या है। उसके बारे में मुझे कोई विशेष जानकारी नहीं थी, लेकिन थोड़ी बहुत जो भी थी, वह किसी भी लेखक के ह्रदय को स्पंदित करने के लिए पर्याप्त थी। इसलिए कुछ लिखते समय अक्सर ही वह मेरी कलम के साये में आ बैठती। शांत रहती,जो लिख रहा होता उसे ऐसे देखती मानो उसमें अपनी छवि निरख रही हो।

उसकी आँखों में आते-जाते अनगिनत भाव मुझे बहुत कुछ बताते हुए से लगते, अपनी तरफ आकर्षित करते दीखते, जो लिख रहा होता वह ठहरने सा लगता। मैं उन भावों की गहराई में उतरने लगता। समझने का प्रयास करने लगता उन बातों को जो उनमें छिपी हुई थीं।

वहां मुझे उसकी आहत कोमल भावनाओं की सिसकियों की गूंज सुनाई देती, उसके बहुरंगी सपनों का आंसुओं में तब्दील हुआ दरिया दिखाई देता। वह दरिया के उस पार निकल जाने के लिए मचलती, हाथों को चप्पू की तरह चलाती दिखती, तो महाकाय लहरें दरिया की उसे फिर-फिर वहीं फेंकती दिखतीं।

वह तिनके के सहारे को भी सोचती नहीं दिखी। एक बार भी भाव ऐसे नहीं दिखे कि वह बिखर रही है, खुद को दरिया को सौंपने जा रही है। उसमें सहारा नहीं साथी ढूंढ़ने की कोशिशें दिखीं। वह अपना मुकद्दर अपने हाथों लिखने को मचलती दिखी। उसके इन भावों  से कलम मेरी सम्मोहित हो उठी। उसकी एक-एक सांसों को पढ़ने की कोशिश करने लगी।

हर साँस में उसे मन को विचलित करने वाली कहानी मिलती। हर कहानी उसके संघर्ष, दृढ़ता, महत्वाकांक्षा की गाथा दिखी। कलम मेरी कह उठी, पहले उसकी कहानी, फिर कुछ और लिखेगी। आखिर मुझे उससे मुलाकातें करनी ही पड़ीं। इन मुलाकातों में वो एक क्षद्मावरण ओढ़े मुस्कुराती, बातों को टालती मिलीं।

लेकिन उन्हीं सी दृढ़ निश्चयी मेरी कलम उन्हें कुरेदती ही रही तो वह परत दर परत खुलती, इस उपन्यास के पन्नों में सिमटती चली गईं। खुलती हर परत के साथ मेरी कलम चौंकती कि यह कैसे-कैसे रास्तों से गुजरती, किस तरह यहाँ तक आ पहुँची हैं।

सोचती कि सही मायने में जीवन संघर्ष तो इसे ही कह सकते हैं, लेकिन आज ये जिस मुकाम पर पहुंची हुई हैं, क्या इन्हें इस संघर्ष की विजयी नायिका कह सकते हैं? बहुत चिंतन-मनन के बाद वह आख़िरी वाक्य लिखती है कि, ''इसका निर्णय पाठकों पर ही छोड़ देती हूँ।''

तो मित्रों ! अब गेंद आपके पाले में है। बताइये अपना निर्णय, क्या बेनज़ीर विजयी नायिका है?

- प्रदीप श्रीवास्तव

लखनऊ
23 अगस्त  2023 


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